विशाल हिमखण्ड के नीचे
मंथर गति से बहती
सबकी नज़रों से ओझल
एक गुमनाम सी जलधारा हूँ मैं !
अनंत आकाश में चहुँ ओर
प्रकाशित अनगिनत तारक मंडलों में
एक टिमटिमाता सा धुँधला सितारा हूँ मैं !
निर्जन वीरान सुनसान वादियों में
कंठ से फूटने को व्याकुल
विदग्ध हृदय की एक अधीर
अनुच्चरित पुकार हूँ मैं !
सुदूर वन में सघन झाड़ियों के बीच
खिलने को आतुर दबा छिपा
एक संकुचित नन्हा सा फूल हूँ मैं !
वेदना के भार से बोझिल
कलम से कागज़ पर शब्दबद्ध
होने को तैयार किसी कविता की
एक अनभिव्यक्त चौपाई हूँ मैं !
करुणा से ओत प्रोत किसी
निश्छल, निष्कपट, निर्मल हृदय की
अधरों की कैद से बाहर
निकलने को छटपटाती
एक मासूम सी पार्थना की प्रतिध्वनि हूँ मैं !
वक्त की चोटों से जर्जर, घायल, विच्छिन्न
किन्तु हालात के आगे डट कर खड़े
किसी मुफलिस की आँख से
टपकने को तत्पर
एक अश्रु विगलित मुस्कान में छिपा
विदूप का रुँधा हुआ स्वर हूँ मैं !
इस अंतहीन विशाल जन अरण्य में
अनाम, अनजान, अपरिचित,
विस्मृत प्राय एक नितांत
नगण्य सी शख्सियत हूँ मैं !
अपने बारे में कहने के लिये ऐसा कुछ विशेष नहीं है मेरे पास ! बचपन माता पिता के संरक्षण में बहुत सुखद बीता ! माँ श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ एक विदुषी महिला थीं और अपने समय की प्रख्यात कवियित्री थीं ! पिता जी श्री बृजभूषण लाल जी सक्सेना मध्य प्रदेश में अतिरिक्त जिला जज के गरिमामय पद पर आसीन थे ! साहित्य के प्रति अनन्य अनुराग विरासत में मुझे अपनी माँ से मिला ! जीवन की आपाधापी के बीच सद्साहित्य का पठन पाठन और कभी-कभी थोड़ा बहुत स्वान्त: सुखाय अपनी भावनाओं को डायरी में उकेरने का मेरा उपक्रम चलता रहा किन्तु कभी उन्हें सहेज कर सँजो कर नहीं रखा ! ग्रेजुएशन करने के बाद मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में विवाह बंधन में बँध कर ससुराल में कदम रखा जो कि एक संयुक्त परिवार था ! गृहस्थी के दायित्व और बच्चों की शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारियाँ निभाते हुए साहित्य सृजन का यह शौक तनिक धूमिल पड़ गया लेकिन जब बच्चे भी अपने-अपने जीवन में स्थापित हो गये और कुछ समय मिला तो इस शौक को पुन: पुष्पित पल्लवित होने का अवसर मिला ! सितम्बर २००८ में एक मित्र के माध्यम से हिन्दी ब्लॉगजगत से पहली बार परिचय हुआ ! उनकी सहायता से ब्लॉग बनाया और सहमते सकुचाते अपना पहला कदम इस दुनिया में रखा ! तब ही से अपने ब्लॉग ‘सुधीनामा’ पर सक्रिय हूँ ! सामाजिक सरोकारों के प्रति मेरा हृदय सदैव प्रतिबद्ध रहा है और जब भी मेरे मन को कुछ विचलित करता है मैं उस पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करती हूँ ! स्वभाव से मैं एक भावुक, संवेदनशील एवं न्यायप्रिय महिला हूँ ! अपने स्तर पर अपने आस पास के लोगों के जीवन में यथासंभव खुशियाँ जोड़ने की कोशिश में जुटे रहना मुझे अच्छा लगता है !
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बहुत सुन्दर परिचय दिया ………आभार्।
जवाब देंहटाएंगजब का परिचय .... आपकी रचनाएँ पढ़ कर बिलकुल ऐसा ही लगता है ...
जवाब देंहटाएंSadhna jee ke bare me jankar achchha laga.. bahut behtareen..
जवाब देंहटाएंएक बार पुनः आपसे आपका परिचय पाकर अच्छा लगा .... बहुत ख़ुशी हुई :))
जवाब देंहटाएंपरिचय की इस कड़ी में आदरणीय साधना जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंएक मासूम सी पार्थना की प्रतिध्वनि हूँ मैं !
वक्त की चोटों से जर्जर, घायल, विच्छिन्न
किन्तु हालात के आगे डट कर खड़े
किसी मुफलिस की आँख से
टपकने को तत्पर
एक अश्रु विगलित मुस्कान में छिपा
विदूप का रुँधा हुआ स्वर हूँ मैं !
भावमय करते शब्द ... आभार आपका इस प्रस्तुति के लिए
सुन्दर परिचय दिया साधना वैद जी का
जवाब देंहटाएंचलिए एक नयी बात पता चली साधना जी के विषय में!!
जवाब देंहटाएंis parichay ko padh kar mano aisa laga jaise pardarshi aaiyne ke aage aap ko khada kar mujhe apke pure vyaktitv se parichit kara diya gaya ho. waise to ye ek saty hai ki insan khud ko bhi poorn roop se nahi jaan pata lekin ise padh kar lagta hai ab jaise poorn roop se jan gayi hun, aur kyu n janu aapne apna parichay hi aisa diya hai.
जवाब देंहटाएंbahut sunder shabdo me varnit kiya hai apne swayam ko.
बहुत अच्छा परिचय दिया है...आभार!!
जवाब देंहटाएंसही परिचय दिया है |बहुत भावुक और सम्वेदनशील है मेरी बहन |
जवाब देंहटाएंआशा