मेरा परिचय
खुद मुझको मालूम नहीं है.
कितने जन्मों से
ना जाने कितने परिचय
लेकर घूम रहा है यह माटी का चोला
और ना जाने कब तक यूँ ही
आने और जाने का चक्र
चलेगा इस नश्वर शरीर के साथ
मुझे मालूम नहीं खुद
मेरा परिचय!
जब से धारण किया है मैंने इस चोले को
सलिल कहकर पुकारते हैं सब मुझको
मैं पिछली आधी शताब्दि से खुद को भी यह मान चुका हूँ
जब कोई मुझको पुकारता है यह कहकर सुनता हूँ और बोलता हूँ
देता जवाब हूँ
पर जब ख़ुद से बात कभी करना चाहूँ तो
क्या कहकर ख़ुद को पुकार लूँ ख़ुद को नाम कौन सा दूँ मैं?
सोच यही घुटता रहता हूँ. एक रोज़
जब अपने अन्दर
दिल दिमाग से पार कहीं जाकर देखा
तब मुझे कहीं भी दिखा नहीं मेरा शरीर यह माटी का
बस एक किरण का पुंज दिखा
किरणें बिखेरता.
उस प्रकाश में
शीतलता थी शांति और आनंद का एक अद्भुत अनुभव था
वह प्रकाश क्या मैं था
‘मैं’ जैसा शायद कुछ वहाँ नहीं था नहीं वहाँ था ‘तुम’ ‘वह’ या कोई भी दूसरा. कितने जन्मों से कितने ही रूप बदलकर
सोच रहा हूँ
कब इस चोले से पाऊँ छुटकारा जल्दी
और उस ज्योतिर्पुंज में एकाकार हो सकूँ
मुक्त हो सकूँ “मैं” से
और आज़ाद हो सकूँ
बार-बार इस चोले की अदला बदली से
और पा जाऊँ
ख़ुद का ख़ुद से असली परिचय!!
वो जो मेरा परिचय है
नाम: सलिल वर्मा
जन्म-तिथि: 12 फरवरी 1961
जन्म-स्थान: पटना, बिहार माता-पिता: श्रीमती बृज कुमारी – श्री शम्भु नाथ वर्मा गर्ल फ्रेंड्स: श्रीमती रेणु स. प्रिया (जीवन संगिनी)
प्रतीक्षा प्रिया (पुत्री)
पत्नी की सबसे अच्छी बात: वो मेरा ब्लॉग बिल्कुल नहीं पढतीं
मित्र: श्रीप्रकाश द्विवेदी एवम चैतन्य आलोक (मेरी सभी पोस्ट्स के प्रथम श्रोता) – इनके बिना
मेरे वजूद की कल्पना नहीं की जा सकती.
शिक्षा: एम. एस-सी. (रसायन शास्त्र), एम.बी.ए. (वित्त), एल-एल.बी
वृत्ति: एक आर्थिक संस्थान में कार्यरत, सम्प्रति गुजरात में पदस्थापित
अभिरुचि:फिल्म संगीत और साहित्य
प्रेरणा: सर्वश्री के. पी. सक्सेना, गुलज़ार और डॉ. राही मासूम रज़ा
गुरू: श्री कृपा शंकर बहादुर (शैक्षिक) और श्रीमती पुष्पा अर्याणि (अभिनय) रचनायें: व्यवस्थित रूप से अपने व अन्य ब्लॉग पर लिखी रचनायें
मेरी श्रेष्ठ रचनायें: वे जो लिखकर फाड़ दीं
प्रकाशित: कोई नहीं-कभी नहीं
सम्मान व पुरस्कार: एक बहुत बड़ा अनदेखा परिवार और उनसे मिलने वाला निरंतर स्नेह
अविस्मरणीय:कम माई बिलवेड – पर्ल एस. बक और एलेवेन मिनट्स – पॉलो कोएल्हो (विदेशी उपन्यास), मृयुंजय – शिवाजी सावंत (मराठी),जन अरण्य – शंकर (बांगला), चेम्मीन – तकषि शिवशंकर पिल्लै (मळयालम), दिल एक सादा कागज़ – राही मासूम रज़ा (हिन्दुस्तानी), फ्लाइट ऑफ द पिजंस – रस्किन बॉण्ड (अंगरेज़ी), मोहन दास – उदय प्रकाश (हिन्दी) इफ गॉड वाज़ अ बैंकर – रवि सुब्रमनियन (आर्थिक विषय पर आधारित उपन्यास अंगरेज़ी) और इसी शृंखला के दो अन्य उपन्यास (डेविल इन पिन-स्ट्राइप्स तथा इंक्रेडिबल बैंकर), पन्द्रह पाँच पचहत्तर – गुलज़ार (नज़्में हिन्दुस्तानी) और बहुत कुछ.
रूपांतरण: ओशो के प्रवचनों से धार्मिक आस्था:श्रीमद्भागवत गीता के सम्पर्क में आने के पूर्व नास्तिक
मेरे ब्लॉग्स:सम्वेदना के स्वर और चला बिहारी ब्लॉगर बनने
सलिल सर से इस तरह औपचारिक रूप से मिलकर अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंसलिल जी से इस प्रकार मिलना बहुत अच्छा लगा ! उनके ब्लॉग से अभी तक अधिक परिचय नहीं था मेरा लेकिन इस प्रभावशाली आत्मोद्बोधन से उनका लेखन इतना प्रभावी लगा कि अब मैं इनके ब्लॉग की नियमित विजिटर बन जाउँगी यह निश्चित है ! आपका आभार रश्मिप्रभा जी तथा सलिल जी को अनन्त शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसलिल जी का परिचय ख़ुद उनसे अच्छा कोई दे ही नहीं सकता था ....
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा ....
सलिल जी याने बिहारी बाबू....
जवाब देंहटाएंउनकी पोस्ट पढ़ कर कुछ अलग सा ही समझती थी उन्हें(आशा है वे नहीं पूछेंगे कि क्या ?)
अभी अभी उन्होंने मेरी कहानी केतकी की समीक्षा लिखी "आँच" के लिए..तब थोड़ा सा वार्तालाप हुआ उनसे....बहुत अच्छे,इंटेलिजेंट,सरल,सहज से इंसान और बड़े भाई से लगे....
ढेर सारी शुभकामनाएं उन्हें...
सादर
अनु
सलिल चचा!!!! :) :) :)
जवाब देंहटाएंसलिल चचा!!!! :) :) :)
जवाब देंहटाएंखूबसूरत परिचय सलिल जी को जानने का मौका मिला
जवाब देंहटाएंमुझे यहाँ स्थान देकर रश्मि दी ने जो सम्मान दिया है वह पाकर मैं कृतार्थ हुआ...
जवाब देंहटाएंमैंने हमेशा यही कहा है कि हर महान व्यक्ति की आत्मकथा हमेशा पीछे से लिखी जाती है.. अर्थात यदि वह विख्यात क्रिकेटर हुआ तो यह लिखा जाता है कि बचपन से ही उन्हें क्रिकेट का शौक था, अभिनेता के लिए लिखा जाता है कि आईने के सामने मुँह बनाते थे... लेकिन मेरे परिचय में ऐसा कुछ भी नहीं.. न ख्यातिप्राप्त हूँ, न सम्मानित, न प्रकाशित.. बस दो बहुत ज़रूरी बातें हैं मेरे पास.. दिल और दिमाग.. इसी से बैलेंस बनाकर जिंदगी की रस्सी पर कलाबाजियां दिखाता एक नट हूँ.. ज़रा सा पैर फिसला और बस.. पटाक्षेप!!
सलिल जी से इस प्रकार मिलना बहुत अच्छा लगा ..बहुत ही सरल और सहज इंसान लगे.उन्हें मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंसलिल कहकर पुकारते हैं सब मुझको
जवाब देंहटाएंमैं पिछली आधी शताब्दि से खुद को भी यह मान चुका हूँ
जब कोई मुझको पुकारता है यह कहकर सुनता हूँ और बोलता हूँ
देता जवाब हूँ
पर जब ख़ुद से बात कभी करना चाहूँ तो
क्या कहकर ख़ुद को पुकार लूँ ख़ुद को नाम कौन सा दूँ मैं?
कई बार ये प्रश्न सहज़ ही बहुत गंभीर व बड़ा हो जाता है ...
परिचय की श्रृंखला में आदरणीय सलिल जी के बारे में विस्तार से जानकर अच्छा लगा ...आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए
सलिल जी से इस तरह मिलना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसलिल जी का परिचय पढ़कर अच्छा लगा...उनके ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ती रहती हूँ.
जवाब देंहटाएंमैं भी पटना की हूँ और जानती हूँ कि वहाँ के लोग सरल होते हैं:)
bade bhaiya :)))
जवाब देंहटाएंaapka jabab nahi...
रोचक तरीका है परिचय का ....
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